मीरा बाई कृष्णा-भक्ति शाखा की प्रमुख कवियत्री थी | एक ऐसी राजकुमारी और महारानी जिसने कृष्णा प्रेम भक्ति में अपना सारा सुख वैभव त्याग दिया | मीरा बाई ने अपने पति के देहांत के बाद अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में लगा दिया | मीरा बाई की कविताओं में अपने आप को श्री कृष्ण की प्रियतम बताया है |
ऐसा माना जाता है की मीरा बाई द्वापर युग की राधा का अवतार थी | राजस्थान में मीरा बाई के कई मंदिर स्थित है | पुरे भारत में मीरा बाई को एक महान कृष्ण भक्त के रूप में देखा जाता है |
मीरा बाई ने महिलाओ पर हो रहे अत्याचारों का विरोध अपनी कविताओं के माध्यम से किया | मीरा बाई ने समाज मी फैली कुरीतियों का भी विरोध किया |
मीरा बाई का जीवन परिचय (Meera bai In Hindi)
नाम (Name) - मीरा बाई (MEERA BAI )
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मृत्यु (DEATH) - 1546 ईसवी
पिता का नाम (FATHER'S NAME) - राव रतन सिंह राठौड़
मीरा बाई का प्रारम्भिक जीवन (Meera Bai's Early Life) -
मीरा बाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता रियासत के राजा रतन सिंह के घर हुआ | मीरा बाई का जन्म 1498 में मेड़ता में हुआ | मेड़ता वर्तमान में राजस्थान के नागौर जिले में स्थित है | मीरा बाई की बचपन से ही कृष्णा भक्ति में रुचि थी | मीरा बाई के देख-रेख उनके दादा राव दूदाजी ने की थी |
मीरा बाई का विवाह और पति की मृत्यु ( Meera Bai In Hindi )
मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के प्रसिद्ध शाशक महाराणा संग्राम ( राणा सांगा ) के पुत्र कुंवर भोजराज से हुआ था | मीरा बाई का विवाह उनकी इच्छा से नहीं हुआ था | मीरा बाई का विवाह सन 1516 में हुआ था | लेकिन यह विवाह अधिक समय तक नहीं चल सका | 1521 में कुंवर भोजराज की मृत्यु हो जाती है | मीरा बाई पर दुखो का पहाड़ गिर पड़ा |
पति की मृत्यु के बाद मीरा बाई की कृष्ण भक्ति और गहरी हो गयी |
उस समय सती प्रथा का बहुत प्रचलन था | मेवाड़ के राजपरिवार ने मीरा बाई को भी कुंवर भोजराज के साथ सती ( अपने पति के लाश के साथ जीवित अग्नि में प्रवेश करना ) करने का प्रयास किया लेकिन मीरा बाई ने मना कर दिया | इसके बाद मेवाड़ के राजपरिवार द्वारा मीरा बाई को कई बार मरने का प्रयास किया गया लेकिन मीरा बाई हर बार श्री कृष्ण की कृपा के बच्च जाती थी |
एक बार मीरा बाई को जहर पिलाया गया | राजस्थान में एक प्रसिद्ध दोहा है
"वा मीरा मीर की , वा विष रा प्याला पि गयी,थू पिए तो परी मरे "
मीरा बाई का पूर्ण वैराग्य (Meera Bai's absolute quietness)-
पति की मृत्यु के बाद मेवाड़ के राजपरिवार द्वारा उन्हें बार बार परेशान किया जाने लगा | मीरा बाई कृष्ण मंदिर में जाकर नाचती - गाती | मीरा ने पूर्ण वैराग्य अपना लिया यह बात राजपरिवार को अच्छी नहीं लगी उनका मानना था की इससे मेवाड़ राजवंश की मर्यादा घटेगी |
मीरा बाई ने मेवाड़ त्याग दिया और वापस मेड़ता आ गयी लेकिन कुछ समय रहने के बाद तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ी | उन्होंने श्री कृष्णा के प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा की | जिसमे बृज , द्वारका , वृन्दावन आदि तीर्थ स्थलों के दर्शन किये |
इसी दौरान मीरा बाई रूप गोस्वामी जी से भी मिली थी | मीरा बाई का अधिकतर समय तीर्थ यात्रा , साधु संतो और हिंदी काव्य रचना में ही बीतता था |
मीरा बाई का अंतिम समय (Mira Bai's last time) -
मीरा ने अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति को समर्पित कर दिया | ऐसी महान आत्मा पर भारत हमेशा गर्व करता रहेगा | ऐसा कहा जाता है मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति में सशरीर समाहित हो गयी थी |
मीरा बाई की मृत्यु कहना गलत होगा क्युकी मीरा बाई शशरीर श्री भगवन की मूर्ति में समाहित हो गयी थी |
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