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मीरा बाई का जीवन परिचय (Meera bai In Hindi)




मीरा बाई कृष्णा-भक्ति शाखा की प्रमुख कवियत्री थी | एक ऐसी राजकुमारी और महारानी जिसने कृष्णा प्रेम भक्ति में अपना सारा सुख वैभव त्याग दिया | मीरा बाई ने अपने पति के देहांत के बाद अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में लगा दिया | मीरा बाई की कविताओं में अपने आप को श्री कृष्ण की प्रियतम बताया है |

ऐसा माना जाता है की मीरा बाई द्वापर युग की राधा का अवतार थी | राजस्थान में मीरा बाई के कई मंदिर स्थित है | पुरे भारत में मीरा बाई को एक महान कृष्ण भक्त के रूप में देखा जाता है |

मीरा बाई ने महिलाओ पर हो रहे अत्याचारों का विरोध अपनी कविताओं के माध्यम से किया | मीरा बाई ने समाज मी फैली कुरीतियों का भी विरोध किया |


मीरा बाई का जीवन परिचय (Meera bai In Hindi)


नाम (Name) -                                 मीरा बाई (MEERA BAI )                                              
जन्मदिन (BIRTHDAY)       -             1504 ईसवी      
जन्मस्थान (BIRTH PLACE)     -                मेड़ता (राजस्थान )
मृत्यु (DEATH)                      -               1546 ईसवी 

पिता का नाम (FATHER'S NAME)           -         राव रतन सिंह राठौड़                                                                                             

मीरा बाई का प्रारम्भिक जीवन (Meera Bai's Early Life) -



मीरा बाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता रियासत के राजा रतन सिंह के घर हुआ | मीरा बाई का जन्म 1498  में मेड़ता में हुआ | मेड़ता वर्तमान में राजस्थान के नागौर जिले में स्थित है | मीरा बाई की बचपन से ही कृष्णा भक्ति में रुचि थी | मीरा बाई के देख-रेख उनके दादा राव दूदाजी ने की थी | 


मीरा बाई का विवाह और पति की मृत्यु ( Meera Bai In Hindi


मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के प्रसिद्ध शाशक महाराणा संग्राम ( राणा सांगा ) के पुत्र   कुंवर भोजराज से हुआ था | मीरा बाई का विवाह उनकी इच्छा से नहीं हुआ था | मीरा बाई का विवाह  सन 1516 में हुआ था | लेकिन यह विवाह अधिक समय तक नहीं चल सका | 1521 में कुंवर भोजराज की मृत्यु हो जाती है | मीरा बाई पर दुखो का पहाड़ गिर पड़ा | 

पति की मृत्यु के बाद मीरा बाई की कृष्ण भक्ति और गहरी हो गयी | 


उस समय सती प्रथा का बहुत प्रचलन था | मेवाड़ के राजपरिवार ने मीरा बाई को भी कुंवर भोजराज के साथ सती ( अपने पति के लाश के साथ जीवित अग्नि में प्रवेश करना ) करने का प्रयास किया लेकिन मीरा बाई ने मना कर दिया | इसके बाद मेवाड़ के राजपरिवार द्वारा मीरा बाई को कई बार मरने का प्रयास किया गया लेकिन मीरा बाई हर बार श्री कृष्ण की कृपा के बच्च जाती थी | 

एक बार मीरा बाई को जहर पिलाया गया | राजस्थान में एक प्रसिद्ध दोहा है 

"वा मीरा मीर की , वा विष रा प्याला पि गयी,थू पिए तो परी मरे

मीरा बाई का पूर्ण वैराग्य (Meera Bai's absolute quietness)-


पति की मृत्यु के बाद मेवाड़ के राजपरिवार द्वारा उन्हें बार बार परेशान किया जाने लगा | मीरा बाई कृष्ण मंदिर में जाकर नाचती - गाती | मीरा ने पूर्ण वैराग्य अपना लिया यह बात राजपरिवार को अच्छी नहीं लगी उनका मानना था की इससे मेवाड़ राजवंश की मर्यादा घटेगी | 

मीरा बाई ने मेवाड़ त्याग दिया और वापस मेड़ता आ गयी लेकिन कुछ समय रहने के बाद तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ी  | उन्होंने श्री कृष्णा के प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा की | जिसमे बृज , द्वारका , वृन्दावन आदि तीर्थ स्थलों के दर्शन किये | 

इसी दौरान मीरा बाई रूप गोस्वामी जी से भी मिली थी | मीरा बाई का अधिकतर समय तीर्थ यात्रा , साधु संतो और हिंदी काव्य रचना में ही बीतता था | 

 मीरा बाई का अंतिम समय (Mira Bai's last time) - 


मीरा ने अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति  को समर्पित कर दिया | ऐसी महान आत्मा पर भारत हमेशा गर्व करता रहेगा | ऐसा कहा जाता है मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति में सशरीर समाहित हो गयी थी | 

मीरा बाई की मृत्यु कहना गलत होगा क्युकी मीरा बाई शशरीर श्री भगवन की मूर्ति में समाहित हो गयी थी | 







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